धूल को चंदन, ज़मीं को आसमाँ कैसे लिखें?
मरघटों में ज़िंदगी की दास्तां कैसे लिखें?
खेत में बचपन से खुरपी फावड़े से खेलती,
उँगलियों से खू़न छलके, मेंहदियां कैसे लिखें?
हर गली से आ रही हो जब धमाकों की सदा,
बाँसुरी कैसे लिखें; शहनाइयां कैसे लिखें?
कुछ मेहरबानों के हाथों कल ये बस्ती जल गई;
इस धुएँ को घर के चूल्हे का धुआँ कैसे लिखें?
दूर तक काँटे ही काँटे, फल नहीं, साया नहीं।
इन बबूलों को भला अमराइयां कैसे लिखें
रहज़नों से तेरी हमदर्दी का चरचा आम है;
मीर जाफर! तुझको मीर-ऐ-कारवाँ कैसे लिखें?
Wednesday, November 12, 2008
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कोई आपसे सीखे साफगोई !
ReplyDelete"खेत में बचपन से खुरपी फावड़े से खेलती,
उँगलियों से खून छलके तो हिना कैसे लिखें?"
आपकी उम्दा गजल पढ के, दो पंक्तियां याद आयीं, किनका है याद नहीं है :
" रूप से कह दो कि देखे दूसरा कोई घर
मैं गरीबों की जवानी हूँ, मुझे फुरसत नहीं है !"
सादर ।।
वाह! बेहद खुबसूरत ग़ज़ल है डॉ अमर ज्योति ! लिखने वालों की कमी नही है यहाँ मगर कमजोरों का दर्द कोई नही लिखता ! यहाँ धूल को ही चंदन लिखा जा रहा है, शमशान दिखते ही नही ! बिलखती हुई कराहों में लोग अपनी आशिकी ढूँढने का प्रयत्न करते हैं !
ReplyDeleteआपके इस दर्द में हम जैसे मित्र आपके साथ हैं इस उम्मीद के साथ कि अच्छे दिन भी आएंगे !
शुभकामनायें !
खेत में बचपन से खुरपी फावड़े से खेलती,
ReplyDeleteउँगलियों से खू़न छलके तो हिना कैसे लिखें?
हर गली से आ रही हो जब धमाकों की सदा,
बाँसुरी कैसे लिखें; शहनाइयां कैसे लिखें?
" m speechless.....so impresive"
Regards
बहुत सुंदर लिखते हैं आप। आपको पढना अच्छा लगता है।
ReplyDeleteहर गली से आ रही हो जब धमाकों की सदा,
ReplyDeleteबाँसुरी कैसे लिखें; शहनाइयां कैसे लिखें?
अच्छा लगा आपको पढकर बहुत ही अच्छी कविता के लिए बधाई स्वीकार करें
खेत में बचपन से खुरपी फावड़े से खेलती,
ReplyDeleteउँगलियों से खू़न छलके तो हिना कैसे लिखें?
अतिसुन्दर........प्रशंशा को शब्द नही मेरे पास..........
सीधे मन में उतरजाने वाली इस सुंदर रचना के लिए आपका बहुत बहुत आभार..........
धूल को चंदन, ज़मीं को आसमाँ कैसे लिखें?
ReplyDeleteमरघटों में ज़िंदगी की दास्तां कैसे लिखें?
बहुत अच्छी कविता यथार्थ दर्शाती हुई बधाई/आशा है जल्द ही फ़िर से आयेंगे अच्छे दिन/
बहुत खरी गज़ल है। ऐसे ही लिखते रहें।
ReplyDeleteआप ने आज का सच लिख दिया है.्बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteधन्यवाद
क्या एक्सप्रेशन है आपकी गजल में। जी चाहता है आपकी कलम को चूम लूं। बस यूं ही लिखते रहें।
ReplyDeleteअमरजी,
ReplyDeleteपूरी गज़ल खूबसूरत है. एक एक शेर अपनी जगह अपने आप में ही पूरी कहानी लिये है. दाद कबूलें.
आप सबका हार्दिक आभार।
ReplyDeleteBhai Dr. Amarji
ReplyDeleteBlog men di huyeen aapki saaari gazale padhi hain. Aap bahut sunder gazalen likhate hain. Bahut-bahut badhayee.Sabhi gazalon ka har sher prabhavit karata ha. blog ke alava bhi patrikaon men aapko padha hai.Punah badhayee.
Chandrabhan Bhardwaj
मतअला बहुत-बहुत खूबसूरत है............. बधाई................................
ReplyDeleteखेत में बचपन से खुरपी फावड़े से खेलती,
ReplyDeleteउँगलियों से खू़न छलके तो हिना कैसे लिखें?
हर गली से आ रही हो जब धमाकों की सदा,
बाँसुरी कैसे लिखें; शहनाइयां कैसे लिखें?
अमर जी बहुत बहुत बधाई ऐसी लाजवाब शायरी के लिए...शब्द और भाव दोनों बेमिसाल...वाह.
नीरज
बहुत सुंदर! 'धूल को चंदन' निहायत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल है, बार बार पढ़ने को दिल करता है।
ReplyDeletenaya kab??
ReplyDeletewah-wah sir, ek baar pahle bhi aapke blog par aaya tha, lekin aaj to mazaa aa gaya.
ReplyDeleteबहुत खूब! एक पुराने गीत के बोल याद आ गए: हम ग़मज़दा हैं लायें कहाँ से खुशी के गीत...
ReplyDeleteकहां व्यस्त हो बंधु ?
ReplyDeleteJanaab, ab toh 20 comments ho gaye, ab toh naya likhe kuch :)
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