Thursday, September 24, 2009

आप सीने से

आप सीने से फिसलता हुआ आँचल देखें
या किसी पाँव में बजती हुई पायल  देखें

हम गंवारों की  मगर एक ही रट है साहब 
प्यासे खेतों पे बरसता हुआ बादल देखें

बुद्धिमानों की नसीहत से तो दिल ऊब चुका
अब तो चल कर कोई वहशी, कोई पागल देखें

घर की दीवारों के उस पार भी झांकें तो सही
और सड़कों पे उबलती हुई हलचल देखें

कोई दहशत है के वहशत मेरी आँखों में नदीम
शाख़ भी टूटे तो कटता हुआ जंगल देखें.

7 comments:

  1. पहले शेर से लगा हल्की गज़ल है लेकिन आगे भारी हो गई

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  2. Bahut achchee Gazal Khas kar ye sher
    Buddhimanon kee naseehat e dil oob chuka
    kyun chal kar koee mjanoo koee pagal dekhen.

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  3. "शाख भी टूटे तो कटता हुआ जंगल देखें !"
    बहुत बढ़िया भाई जी , वही चिर परिचित अंदाज़, काश हम आपकी रचनाओं से कुछ सीख सकें ....

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  4. सभी शेर एक से बढ कर एक, बहुत सुंदर.
    धन्यवाद

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  5. डाक्टर, क्या बात है! कितना वज़नदार लिखा है, वह भी Friday को :)
    "प्यासे खेतों पे . . . "
    "बुद्धिमानों की नसीहत . . ."
    और इसने तो बिलकुल ही चित्त कर दिया, ऐसा लग रहा है कि किसी पंछी ने लिखा है:
    "कोई दहशत है के वहशत . . . "
    लिखते रहिये, पर इतनी देर नहीं लगाईयेगा अब !!
    yeh anonymus kaahe post ho raha hai comment :) ???

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  6. घर की दीवारों के उस पार

    बेहतरीन

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  7. घर की दीवरों के उस पार


    बेहतरीन

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