जब भी चाहा तुमसे थोड़ी प्यार की बातें करूं
पास बैठूं दो घड़ी,श्रृंगार की बातें करूं।
वेदना चिरसंगिनी हठपूर्वक कहने लगी
आंसुओं की,आंसुओं की धार की बातें करूं।
देखता हूँ रुख ज़माने का तो ये कहता है मन
भूल कर आदर्श को व्यवहार की बातें करूं।
आप कहते हैं प्रगति के गीत गाओ गीतकार;
सत्य कहता है दुखी संसार की बातें करूं।
चाटुकारों के नगर में सत्य पर प्रतिबन्ध है।
किस लिए अभिव्यक्ति के अधिकार की बातें करूं।
इस किनारे प्यास है; और उस किनारे है जलन
क्यों न फिर तूफ़ान की मंझधार की बातें करूं.
No comments:
Post a Comment