शरीक तेरे हर इक ग़म हर इक खुशी में रहा।
मैं तुझसे दूर मगर तेरी ज़िन्दगी में रहा।
जो दर्द आंख से ढल कर रुका लबों के करीब,
तमाम उम्र वो शामिल मेरी हँसी में रहा।
समन्दरों में मेरी तशनगी को क्या मिलता?
मैं अब्र बन के पलट आया फिर नदी में रहा।
वो जिनकी नज़र-ऐ-इनायत पे लोग नाज़ां थे,
बहुत सुकून मुझे उनकी बेरुखी़ में रहा।
वो मेरा साया अंधेरों में गुम हुआ है तो हो;
यही बहुत है मेरे साथ रोशनी में रहा.
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bahut badhiyaa!
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