टूटे यूं संबंध सत्य से सभी झूठ स्वीकार हो गये।
ठोकर खाते-खाते आख़िर हम भी दुनियादार हो गये॥
बचपन से सुनते आये थे
सच को आंच नहीं आती है।
पर अब देखा-सच बोलें तो,
दुनिया दुश्मन हो जाती है॥
सत्यम वद, धर्मम चर के उपदेश सभी बेकार हो गये।
ठोकर खाते-खाते………….
खण्डित हुई सभी प्रतिमाएं;
अब तक जिन्हें पूजते आए।
जिस हमाम में सब नंगे हों,
कौन भला किससे शरमाए?
बेचा सिर्फ़ ज़मीर और सुख-स्वप्न सभी साकार हो गये।
ठोकर खाते-खाते…………….
गिद्धों के गिरोह में जबसे
हमने अपना नाम लिखाया।
लोग मरे दुर्भिक्षों में पर,
हमने सदा पेट भर खाया॥
कितने दिन नाक़ारा रहते;हम भी इज़्ज़तदार हो गये।
ठोकर खाते-खाते…………….
Tuesday, July 22, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत सुन्दर रचना है।
ReplyDeleteखण्डित हुई सभी प्रतिमाएं;
अब तक जिन्हें पूजते आए।
जिस हमाम में सब नंगे हों,
कौन भला किससे शरमाए?