Thursday, July 17, 2008
उसने कभी भी
उसने कभी भी पीर पराई सुनी नहीं .
कितना भला किया कि बुराई सुनी नहीं.
रोटी के जमा-ख़र्च में ही उम्र कट गई,
हमने कभी ग़ज़ल या रुबाई सुनी नहीं .
औरों की तरह तुमने भी इलज़ाम ही दिये;
तुमने भी मेरी कोई सफाई सुनी नहीं.
बच्चों की नर्सरी के खिलौने तो सुन लिए;
ढाबे में बर्तनों की धुलाई सुनी नहीं.
मावस की घनी रात का हर झूठ रट लिया;
सूरज की तरह साफ सचाई सुनी नहीं.
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your each poem is very good! continue and share writings...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteदिल खुश कर दिया आपने !!
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