बस में बैठे बैठे आंखें भर आना
भूला नहीं छोड़ कर गांव शहर जाना
कभी समन्दर की तूफ़ानों की बातें;
और कभी हल्की रिमझिम से डर जाना
बाग़ कट चुके,खेतों में सड़कें दौड़ीं;
कैसा गाँव कहां छुट्टी में घर जाना
किसने लिख दी जीवन की ये परिभाषा!
ज़िन्दा रहने की कोशिश में मर जाना
कैसा कठिन सफ़र होता है,पूछो मत,
शाम ढले बेरोज़गार का घर जाना
भूला नहीं छोड़ कर गांव शहर जाना
कभी समन्दर की तूफ़ानों की बातें;
और कभी हल्की रिमझिम से डर जाना
बाग़ कट चुके,खेतों में सड़कें दौड़ीं;
कैसा गाँव कहां छुट्टी में घर जाना
किसने लिख दी जीवन की ये परिभाषा!
ज़िन्दा रहने की कोशिश में मर जाना
कैसा कठिन सफ़र होता है,पूछो मत,
शाम ढले बेरोज़गार का घर जाना
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