वो मेरे बच्चों को स्कूल ले के जाता था।
और उसका बेटा वहीं खोमचा लगाता था॥
जो सबको धूप से, बरसात से बचाता था ।
खुद उसके सर पे फ़क़त आसमाँ का छाता था।
भटक गया हूं जहां मैं – कभी उसी वन से,
सुना तो है कि कोई रास्ता भी जाता था॥
सियाह रात थी, और आँधियाँ भी थीं; लेकिन
उन्हीं हवाओं में एक दीप टिमटिमाता था ॥
उसे पड़ोसी बहुत नापसन्द करते थे।
वो रात में भी उजालों के गीत गाता था॥
और उसका बेटा वहीं खोमचा लगाता था॥
जो सबको धूप से, बरसात से बचाता था ।
खुद उसके सर पे फ़क़त आसमाँ का छाता था।
भटक गया हूं जहां मैं – कभी उसी वन से,
सुना तो है कि कोई रास्ता भी जाता था॥
सियाह रात थी, और आँधियाँ भी थीं; लेकिन
उन्हीं हवाओं में एक दीप टिमटिमाता था ॥
उसे पड़ोसी बहुत नापसन्द करते थे।
वो रात में भी उजालों के गीत गाता था॥
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