Tuesday, June 30, 2009

मैं बतलाऊं

मैं बतलाऊं कैसा बन जा
बिलकुल अपने जैसा बन जा

सरदी में सूरज बन कर जल
जेठ तपे तो छाया बन जा

तनहा क़तरे की हस्ती क्या
सबसे मिल कर दरिया बन जा

सदियों से गूंगी है मूरत
इसे छेड़ दे, नग़मा बन जा

समझदार बन कर क्या होगा
चल नदीम फिर बच्चा बन जा

10 comments:

  1. तनहा कतरा की हस्ती क्या
    सबसे मिलकर दरिया बन जा
    बहुत बढ़िया

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  2. बच्चा बनने की ख्वाहिश --
    बहुत खूबसूरत

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  3. डाक्टर साहब, आपके लेखन के हिसाब से काफी नरम सी , नाज़ुक सी ग़ज़ल है :) खुशी हुई पढ़ के, अपनी-अपनी सी लगी रचना. सारे शेर खूबसूरत हैं. अंतिम शेर मेरे मन की भी आवाज़ समेटे है सो मुझे अधिक प्रिय लगा!

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  4. बहुत खूबसूरत!!

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  5. kuchh panktiyaan bahut sundar hai...

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  6. समझ दार बन कर क्या होगा,
    चल नदीम फ़िर बच्चा बन जा.

    बहुत सुंदर.
    धन्यवाद

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  7. Waah Nadeem saheb waah...Nihayat khoobsurat ghazal ke liye dili mubarakbaad kabool farmayen...ghazal ka sher lajawab hai...behtareen hai...waah...
    neeraj

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  8. नदीम साहेब निहायत खूबसूरत ग़ज़ल पढ़वाने के लिए तहे दिल से शुक्रिया...ग़ज़ल का हर शेर बेहतरीन है...मेरी दिलीमुबारक बाद कबूल फरमाएं...
    नीरज

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  9. bilkul apne jaisa ban jaa kamaal kaha hai

    bahut hi sunder gazal padhwayi hai aapne

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