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random ramblings
Tuesday, October 20, 2009
कब तक
कब तक धूप चुरायेंगे
ये बादल छँट जायेंगे
आज तुम्हारा दौर सही
अपने दिन भी आयेंगे
ये परेड के फ़ौजी हैं
लड़ने से कतरायेंगे
फूल यहीं पर सूखेगा
पंछी तो उड़ जायेंगे
दर्द थमा तो चल देंगे
दर्द बढ़ा तो गायेंगे
Saturday, October 3, 2009
सभी से
दुखों से दोस्ताना हो गया है
तुम्हें देखे ज़माना हो गया है
खिलौनों के लिये रोता नहीं है
मेरा बेटा सयाना हो गया है
भरी महफ़िल में सच कहने लगा है
इसे रोको- दिवाना हो गया है
मुखौटा इक नया ला दो कहीं से
मेरा चेहरा पुराना हो गया है
कभी संकेत में कुछ कह दिया था
उसी का अब फ़साना हो गया है
Thursday, September 24, 2009
आप सीने से
आप सीने से फिसलता हुआ आँचल देखें
या किसी पाँव में बजती हुई पायल देखें
हम गंवारों की मगर एक ही रट है साहब
प्यासे खेतों पे बरसता हुआ बादल देखें
बुद्धिमानों की नसीहत से तो दिल ऊब चुका
अब तो चल कर कोई वहशी, कोई पागल देखें
घर की दीवारों के उस पार भी झांकें तो सही
और सड़कों पे उबलती हुई हलचल देखें
कोई दहशत है के वहशत मेरी आँखों में नदीम
शाख़ भी टूटे तो कटता हुआ जंगल देखें.
Saturday, August 22, 2009
ज़िंदगी भी
ज़िंदगी भी अजब तमाशा है
हर घड़ी कुछ नया-नया सा है
दिल ठहरने की सोचता भी नहीं
पाँव ही कुछ थका-थका सा है
मुन्तज़िर है किसी के दामन का
एक आंसू रुका-रुका सा है
जब से बादाकशी से तौबा की
अपना साक़ी ख़फ़ा-ख़फ़ा सा है
कुछ सयानों की देख कर फितरत
एक बच्चा डरा-डरा सा है
Monday, August 10, 2009
प्यार की
प्यार की; दोस्ती की बात करें
आइये ज़िंदगी की बात करें
आँधियों में जो टिमटिमाती है
आज उस रौशनी की बात करें
बारिशों में नहा के घर लौटें
तरबतर सी ख़ुशी की बात करें
दर्द को ख़ूब परेशान करें
खिलखिला कर हँसी की बात करें
ये फ़रिश्ते कहाँ से समझेंगे
इनसे क्या आदमी की बात करें
Wednesday, July 15, 2009
सबको मालूम थे
सबको मालूम थे हमसे भी भुलाए न गए
वे कथानक जो कभी तुमको सुनाये न गए
गीत लिखते रहे जीवन में अंधेरों के खिलाफ़
और
दो-चार दिये तुमसे जलाए न गए
दूर से ही सुनीं वेदों की ऋचाएं अक्सर
यज्ञ में तो कभी शम्बूक बुलाए न गए
यूकेलिप्टस के दरख्तों में न छाया न नमी
बरगद-ओ-नीम कभी तुमसे लगाए न गए
इसी बस्ती में सुदामा भी किशन भी हैं
नदीम
ये अलग बात है मिलने कभी आये न गए
Saturday, July 11, 2009
मंज़िलों से परे
मंज़िलों से परे गुज़रती है
जिंदगी कब, कहाँ ठहरती है
यूं तो हर ओर धूप बिखरी है
मेरे आँगन में कम उतरती है
एक गुड्डा मिला था कचरे में
एक गुड़िया दुलार करती है
आँधियों की कहानियां सुन कर
एक चिड़िया हवा से डरती है
मुट्ठियाँ बांधने से क्या होगा
रेत झरनी है, रेत झरती है
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Dr. Amar Jyoti
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