दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
Saturday, October 18, 2008
सिमटने की हक़ीक़त
सिमटने की हक़ीकत से बंधा विस्तार का सपना;
खुली आँखों से सब देखा किये बाज़ार का सपना।
समंदर के अँधेरों में हुईं गुम कश्तियां कितनी,
मगर डूबा नहीं है-उस तरफ़, उस पार का सपना।
थकूँ तो झाँकता हूं ऊधमी बच्चों की आँखों में;
वहां ज़िन्दा है अब तक ज़िन्दगी का,प्यार का सपना।
जो रोटी के झमेलों से मिली फ़ुरसत तो देखेंगे
किसी दिन हम भी ज़ुल्फ़ों का,लब-ओ-रुख़सार का सपना।
जुनूं है, जोश है, या हौसला है; क्या कहें इसको!
थके-माँदे कदम और आँख में रफ़्तार का सपना।
Friday, October 17, 2008
गिरते-गिरते
गिरते-गिरते संभल गया मौसम ;
लीजिये फिर बदल गया मौसम।
फिर चिता से उठा धुआं बन कर;
हम तो समझे थे जल गया मौसम।
अब पलट कर कभी न आयेगा,
काफी आगे निकल गया मौसम।
ये हवाएं कहीं नहीं रुकतीं;
फिर भी कैसा बहल गया मौसम।
एक उड़ती हुई पतंग दिखी;
और मन में मचल गया मौसम।
लीजिये फिर बदल गया मौसम।
फिर चिता से उठा धुआं बन कर;
हम तो समझे थे जल गया मौसम।
अब पलट कर कभी न आयेगा,
काफी आगे निकल गया मौसम।
ये हवाएं कहीं नहीं रुकतीं;
फिर भी कैसा बहल गया मौसम।
एक उड़ती हुई पतंग दिखी;
और मन में मचल गया मौसम।
Wednesday, October 8, 2008
राम जी से
राम जी से लौ लगानी चाहिए;
फिर कोई बस्ती जलानी चाहिए।
उसकी हमदर्दी के झांसे में न आ;
मीडिया को तो कहानी चाहिए।
तू अधर की प्यास चुम्बन से बुझा;
मेरे खेतों को तो पानी चाहिए।
काफिला भटका है रेगिस्तान में;
उनको दरिया की रवानी चाहिए।
लंपटों के दूत हैं सारे कहार,
अब तो डोली ख़ुद उठानी चाहिए।
फिर कोई बस्ती जलानी चाहिए।
उसकी हमदर्दी के झांसे में न आ;
मीडिया को तो कहानी चाहिए।
तू अधर की प्यास चुम्बन से बुझा;
मेरे खेतों को तो पानी चाहिए।
काफिला भटका है रेगिस्तान में;
उनको दरिया की रवानी चाहिए।
लंपटों के दूत हैं सारे कहार,
अब तो डोली ख़ुद उठानी चाहिए।
Wednesday, October 1, 2008
ख़ूब मचलने की
ख़ूब मचलने की कोशिश कर;
और उबलने की कोशिश कर।
व्याख्याएं मत कर दुनिया की;
इसे बदलने की कोशिश कर।
कोई नहीं रुकेगा प्यारे;
तू ही चलने की कोशिश कर।
इंतज़ार मत कर सूरज का;
ख़ुद ही जलने की कोशिश कर।
गिरने पर शर्मिन्दा मत हो;
सिर्फ़ सँभलने की कोशिश कर।
इन काँटों से डरना कैसा!
इन्हें मसलने की कोशिश कर।
Saturday, September 27, 2008
हौसलों की उड़ान
हौसलों की उड़ान क्या कहिये!
छोटा सा आसमान क्या कहिये !!
दर्द से कौन अजनबी है यहाँ!
दर्द की दास्तान क्या कहिये।
उनके आने का आज चरचा है।
और मेरा मकान क्या कहिये!
बेच डाले चमन के गुल-बूटे;
वाह रे बाग़बान क्या कहिये!
जिंदगी के कठिन सफर में नदीम,
हर क़दम इम्तिहान, क्या कहिये!
छोटा सा आसमान क्या कहिये !!
दर्द से कौन अजनबी है यहाँ!
दर्द की दास्तान क्या कहिये।
उनके आने का आज चरचा है।
और मेरा मकान क्या कहिये!
बेच डाले चमन के गुल-बूटे;
वाह रे बाग़बान क्या कहिये!
जिंदगी के कठिन सफर में नदीम,
हर क़दम इम्तिहान, क्या कहिये!
Wednesday, September 24, 2008
चले गाँव से
चले गाँव से बस में बैठे , और शहर तक आए जी
चौराहे पर खड़े हैं, शायद काम कोई मिल जाए जी।
मांगी एक सौ बीस मजूरी, सुबह सवेरे सात बजे,
सूरज चढ़ा और हम उतरे , लो सत्तर तक आए जी।
दिया फावड़ा-तसला अपने घर ले जा कर मालिक ने,
सर पर रहा सवार न जाने क्या-क्या नाच नचाये जी।
कड़ी धूप में रहे खोदते पत्थर सी मिट्टी दिन भर,
दो पल रुक कर बीड़ी पी तो कामचोर कहलाये जी।
कल क्या होगा, काम मिलेगा या कि नहीं अल्ला जाने;
जिंदा रहने की कोशिश में जीवन घटता जाए जी।
चौराहे पर खड़े हैं, शायद काम कोई मिल जाए जी।
मांगी एक सौ बीस मजूरी, सुबह सवेरे सात बजे,
सूरज चढ़ा और हम उतरे , लो सत्तर तक आए जी।
दिया फावड़ा-तसला अपने घर ले जा कर मालिक ने,
सर पर रहा सवार न जाने क्या-क्या नाच नचाये जी।
कड़ी धूप में रहे खोदते पत्थर सी मिट्टी दिन भर,
दो पल रुक कर बीड़ी पी तो कामचोर कहलाये जी।
कल क्या होगा, काम मिलेगा या कि नहीं अल्ला जाने;
जिंदा रहने की कोशिश में जीवन घटता जाए जी।
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