सच्चाई का दम भरता है;
कोई दीवाना लगता है।
कन्धों पर है बोझ आज का,
आँखों में कल का सपना है।
घनी अमावस की स्याही को,
जुगनू शर्मिंदा करता है।
दुःख सागर सा, सुख मोती सा,
ये दुनिया कैसी दुनिया है?
आसमान को तकने वाले!
आसमान में क्या रक्खा है?
Saturday, April 4, 2009
मौत ज़िन्दगी पर
मौत ज़िन्दगी पर भारी है;
पर क्या करिये लाचारी है।
छीन-झपट कर,लूट- कपट कर,
बचे रहे तो हुशियारी है।
भरे पेट वालों में यारी,
भूखों में मारामारी है।
परिवर्तन भी प्रायोजित है;
और बगा़वत सरकारी है।
सुख को कुतर गए हैं चूहे;
जीवन टूटी अलमारी है।
पर क्या करिये लाचारी है।
छीन-झपट कर,लूट- कपट कर,
बचे रहे तो हुशियारी है।
भरे पेट वालों में यारी,
भूखों में मारामारी है।
परिवर्तन भी प्रायोजित है;
और बगा़वत सरकारी है।
सुख को कुतर गए हैं चूहे;
जीवन टूटी अलमारी है।
Thursday, March 26, 2009
सूखी अमराइयों में
सूखी अमराइयों में क्या जायें!
टूटी शहनाइयों में क्या जायें!!
उन अंधेरों में कुछ नहीं मिलता,
मन की गहराइयों में क्या जायें!
काट दें ज़िन्दगी की हलचल से,
ऐसी तनहाइयों में क्या जाएँ!
भेस शोहरत का रख के मिलती हैं,
ऐसी रुसवाइयों में क्या जाएं!
अपनी आदत है लू के झोंकों की,
तेरी पुरवाइयों में क्या जायें!
जो अन्धेरों में साथ रह न सकें,
ऎसी परछाइयों में क्या जाएं!
हम ग़म-ऐ-रोज़गार के मारे,
उनकी अंगड़ाइयों में क्या जाएं!
टूटी शहनाइयों में क्या जायें!!
उन अंधेरों में कुछ नहीं मिलता,
मन की गहराइयों में क्या जायें!
काट दें ज़िन्दगी की हलचल से,
ऐसी तनहाइयों में क्या जाएँ!
भेस शोहरत का रख के मिलती हैं,
ऐसी रुसवाइयों में क्या जाएं!
अपनी आदत है लू के झोंकों की,
तेरी पुरवाइयों में क्या जायें!
जो अन्धेरों में साथ रह न सकें,
ऎसी परछाइयों में क्या जाएं!
हम ग़म-ऐ-रोज़गार के मारे,
उनकी अंगड़ाइयों में क्या जाएं!
Monday, March 23, 2009
दुख के दिन
दुख के दिन चैन से गुज़ारे हैं;
हम तो अपने सुखों से हारे हैं।
बांध लेते हैं कश्तियाँ अक्सर;
असली दुश्मन तो ये किनारे हैं।
कहकशाओं से कुछ दिये लेकर
हमने मिट्टी के घर संवारे हैं।
अपनी पूंजी हैं बस वही दो पल,
जो तेरे साथ में गुज़ारे हैं।
मेरे पंखों के टूटने पे न जा;
मेरे सपनों में चाँद-तारे हैं।
हम तो अपने सुखों से हारे हैं।
बांध लेते हैं कश्तियाँ अक्सर;
असली दुश्मन तो ये किनारे हैं।
कहकशाओं से कुछ दिये लेकर
हमने मिट्टी के घर संवारे हैं।
अपनी पूंजी हैं बस वही दो पल,
जो तेरे साथ में गुज़ारे हैं।
मेरे पंखों के टूटने पे न जा;
मेरे सपनों में चाँद-तारे हैं।
Saturday, March 7, 2009
ऊब गया है
ऊब गया है बैठे ठाले;
चल थोड़ा सा नीर बहा ले।
शर्ट पहन चे गुएवरा की;
उसका सपना राम हवाले.
जब भी सुख से मन उकताए,
गीत सर्वहारा के गा ले।
कमरे में ऐ सी के ऊपर,
लेनिन की तस्वीर सजा ले।
परिवर्तन होगा, तब होगा;
इस सिस्टम में जगह बना ले।
चल थोड़ा सा नीर बहा ले।
शर्ट पहन चे गुएवरा की;
उसका सपना राम हवाले.
जब भी सुख से मन उकताए,
गीत सर्वहारा के गा ले।
कमरे में ऐ सी के ऊपर,
लेनिन की तस्वीर सजा ले।
परिवर्तन होगा, तब होगा;
इस सिस्टम में जगह बना ले।
Friday, February 27, 2009
कोई भी पर्दा
कोई भी पर्दा, कोई राज़-ओ-राज़दार नहीं;
हमारे घर में कोई छत नहीं, दिवार नहीं।
हमें तो ख़ुद ही बनाने हैं अपने स्वर्ग-नरक;
हमें तुम्हारे ख़ुदाओं पे ऐतबार नहीं।
तेरा निज़ाम है- कर दे कलम ज़ुबान-ए-सुख़न,
मगर ज़हन पे तो तेरा भी अख़्तियार नहीं।
हमें पता है के ये ज़ख़्म भरेंगे कैसे;
हमें किसी भी मसीहा का इन्तज़ार नहीं।
कफ़स में एक सी रुत है तमाम उम्र नदीम;
ख़िज़ां का ख़ौफ़ नहीं; नक़हत-ए-बहार नहीं।
हमारे घर में कोई छत नहीं, दिवार नहीं।
हमें तो ख़ुद ही बनाने हैं अपने स्वर्ग-नरक;
हमें तुम्हारे ख़ुदाओं पे ऐतबार नहीं।
तेरा निज़ाम है- कर दे कलम ज़ुबान-ए-सुख़न,
मगर ज़हन पे तो तेरा भी अख़्तियार नहीं।
हमें पता है के ये ज़ख़्म भरेंगे कैसे;
हमें किसी भी मसीहा का इन्तज़ार नहीं।
कफ़स में एक सी रुत है तमाम उम्र नदीम;
ख़िज़ां का ख़ौफ़ नहीं; नक़हत-ए-बहार नहीं।
Friday, February 20, 2009
सिर्फ़ उम्मीद थी
सिर्फ़ उम्मीद थी; बहाना था;
तुम न आये, तुम्हें न आना था।
दिल में तनहाइयों का सन्नाटा,
और चारो तरफ़ ज़माना था
दीन-ओ-दुनिया से फिर कहां निभती!
दिल को तेरे क़रीब आना था।
एक तूफ़ान आ गया; वरना
ये सफ़ीना भी डूब जाना था।
लौट आए दर-ऐ-बहिश्त से हम;
वां तो सजदे में सर झुकाना था।
खो गया तेज़-रौ ज़माने में;
प्यार का फ़लसफ़ा पुराना था।
ये जो इक ढेर राख का है नदीम-
कल तलक अपना आशियाना था।
तुम न आये, तुम्हें न आना था।
दिल में तनहाइयों का सन्नाटा,
और चारो तरफ़ ज़माना था
दीन-ओ-दुनिया से फिर कहां निभती!
दिल को तेरे क़रीब आना था।
एक तूफ़ान आ गया; वरना
ये सफ़ीना भी डूब जाना था।
लौट आए दर-ऐ-बहिश्त से हम;
वां तो सजदे में सर झुकाना था।
खो गया तेज़-रौ ज़माने में;
प्यार का फ़लसफ़ा पुराना था।
ये जो इक ढेर राख का है नदीम-
कल तलक अपना आशियाना था।
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