बचपन से अलबेले हो तुम;
शायद तभी अकेले हो तुम.
खोखो, कंचे, और कबड्डी,
कभी सड़क पर खेले हो तुम?
इस जर्मन शेफर्ड सरीखे
पाले कई झमेले हो तुम.
टी.वी. पर फुटबाल देख कर,
मन ही मन में 'पेले' हो तुम .
रोमानी पीड़ा के शायर,
कब कितना दुख झेले हो तुम?
Monday, September 1, 2008
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यह तो लगा की आपने इस नाचीज की कहानी लिख दी अमर भाई ! और सब बातों के साथ जर्मन शेफर्ड भी है जो बेहद प्यारा दोस्त है !
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