टूटते ही गए एक-एक करके सब, अब बचा कोई सपना सुनहरा नहीं
निष्प्रभावी रही हर व्यथा की कथा, कौन कहता है प्रारब्ध बहरा नहीं।
जब तलक चुटकुले हम सुनाते रहे, लोग हँसते रहे, मुस्कराते रहे;
दर्द के गीत की तो प्रथम पंक्ति के अंत तक भी कोई व्यक्ति ठहरा नहीं।
हाज़िरी पाठशाला में पूरी रही, फिर भी अपनी पढ़ाई अधूरी रही;
आचरण के पहाड़े तो पूरे रटे , मीठे झूठों का सीखा ककहरा नहीं।
पतझरों से तुम्हारा ये अनुबंध है, इसलिए ही तो फूलों पे प्रतिबन्ध है;
पर हवाओं के पंखों पे उड़ जायेंगी, खुशबुओं पर तो कोई भी पहरा नहीं।
बोझ से दब के कंधे तो झुक जायेंगे, साँस फूली तो कुछ देर रुक जायेंगे,
लौट जाएँ मगर, छोड़ कर ये सफ़र, घाव कोई भी इतना तो गहरा नहीं।
थक के ऐसे न बैठो, उठो चल पड़ो, अपनी आंखों के सपनों को बुझने न दो,
यूं अकेले नहीं क़ाफिले में चलो, काफ़िलों से परे कोई सहरा नहीं।
निष्प्रभावी रही हर व्यथा की कथा, कौन कहता है प्रारब्ध बहरा नहीं।
जब तलक चुटकुले हम सुनाते रहे, लोग हँसते रहे, मुस्कराते रहे;
दर्द के गीत की तो प्रथम पंक्ति के अंत तक भी कोई व्यक्ति ठहरा नहीं।
हाज़िरी पाठशाला में पूरी रही, फिर भी अपनी पढ़ाई अधूरी रही;
आचरण के पहाड़े तो पूरे रटे , मीठे झूठों का सीखा ककहरा नहीं।
पतझरों से तुम्हारा ये अनुबंध है, इसलिए ही तो फूलों पे प्रतिबन्ध है;
पर हवाओं के पंखों पे उड़ जायेंगी, खुशबुओं पर तो कोई भी पहरा नहीं।
बोझ से दब के कंधे तो झुक जायेंगे, साँस फूली तो कुछ देर रुक जायेंगे,
लौट जाएँ मगर, छोड़ कर ये सफ़र, घाव कोई भी इतना तो गहरा नहीं।
थक के ऐसे न बैठो, उठो चल पड़ो, अपनी आंखों के सपनों को बुझने न दो,
यूं अकेले नहीं क़ाफिले में चलो, काफ़िलों से परे कोई सहरा नहीं।
पढ कर आनन्द आ गया . लिखते रहें . आभार !
ReplyDeleteथक के यूं तो न बैठो, उठो चल पड़ो, अपनी आँखों के सपनों को बुझने न दो,
ReplyDeleteयूं अकेले नहीं क़ाफ़िले में चलो, क़ाफ़िलों से बड़ा कोई सहरा नहीं।
" very nice words to read, good creation"
Regards
वाह वाह !
ReplyDeleteक्या जीवन की सच्चाई बखान की है , सब हंसने के साथी हैं, कष्ट और नीरस वातावरण का साथ देने की प्रथा नही है यहाँ डॉ अमर ज्योति !
पढ कर आनन्द आ गया आभार ।
ReplyDeleteबहुत बढिया.
ReplyDeleteएक सच आप ने लिख दिया जीवन का नंगा सच,
ReplyDeleteधन्यवाद
जो कहना चाह रहें हैं, वो बात बढिया है ।
ReplyDeleteBahut Sunder!!
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