ज़रा फ़ुटपाथ पर सोए हज़ारों को गिना जाये।
महकते गेसुओं के पेच-ओ-ख़म गिनने से क्या होगा;
सड़क पर घूमते बेरोज़गारो को गिना जाये।
वो मज़हब हो, के सूबा हो, बहाना नफ़रतों का है;
वतन में दिन-ब-दिन उठती दिवारों को गिना जाये।
हमें मालूम है ‘बिलियॉनियर` हैं मुल्क में कितने;
चलो अब भूखे-प्यासे कामगारों को गिना जाये।
कोई कहता है ‘गाँधी का वतन’ तो जी में आता है,
कि गाँधी की अहिंसा के शिकारों को गिना जाये।
Saheb bahut hi umda gazal hai. Dhanywad swikaar keejiye.
ReplyDeleteमहकते गेसुओं के पेच-ओ-ख़म गिनने से क्या होगा;
ReplyDeleteसड़क पर घूमते बेरोज़गारो को गिना जाये।
कोई कहता है ‘गाँधी का वतन’ तो जी में आता है,
कि गाँधी की अहिंसा के शिकारों को गिना जाये।
बधाई...आप ग़ज़ल में वो सब कह जाते हैं जो आम तौर पर नहीं कहा गया है, और वो भी अलग से अंदाज में......आप की ये विधा ही आप को सबसे अलग रखती है...बेहद असरदार ग़ज़ल कही है आपने...दिली दाद कबूल कीजिये और ऐसे ही लाजवाब अंदाज में लिखते रहिये....वाह...
नीरज
कोई कहता है ‘गाँधी का वतन’ तो जी में आता है,
ReplyDeleteकि गाँधी की अहिंसा के शिकारों को गिना जाये।
बहुत खूब. क्या बात है.
हमें मालूम है ‘बिलियौनियर’ हैं इण्डियन कितने;
ReplyDeleteचलो अब भूखे-प्यासे कामगारों को गिना जाये।
कोई कहता है ‘गाँधी का वतन’ तो जी में आता है,
कि गाँधी की अहिंसा के शिकारों को गिना
बहुत ही अच्छा लिखा है।
हमें मालूम है ‘बिलियौनियर’ हैं इण्डियन कितने;
ReplyDeleteचलो अब भूखे-प्यासे कामगारों को गिना जा
--बेहतरीन!!!
दरअसल ग़ज़ल को लीक से हटकर
ReplyDeleteजिंदगी की तल्ख़ हकीक़त से रूबरू
करने की जेहादी पहल है
आपकी पेशकश !
वरना आसमां के सितारे
इस तरह ज़मीं पर
तलाश लेना, वह भी उनकी
शिद्दत की गर्दिश के साथ !
....मामूली बात नहीं है.
आप दुष्यंत की याद बरबस दिला जाते हैं.
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बधाई.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बहुत खूब !
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