Tuesday, July 29, 2008

दर-ओ-दरीचा

दर-ओ-दरीचा-ओ-दीवार-ओ-सायबान था वो;
जहां ये उम्र कटी ,घर नहीं मकान था वो।

किये थे उसने इशारे,मगर न समझा दिल,
कि मैं ज़मीन से कमतर था; आसमान था वो।

थे उसके साथ ज़माने के मीडिया वाले,
मेरा गवाह फक़त सच; सो बेज़ुबान था वो।

वो खो गया तो मेरी बात कौन समझेगा?
उसे तलाश करो- मेरा हमज़बान था वो।


जो ज़िंदगी के हर इक इम्तिहां में फ़ेल हुआ 
सही तो ये है ज़माने का इम्तिहान  था   वो 

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