Sunday, July 27, 2008

धुंध और कोहरे

धुंध और कोहरे का मौसम देखिये जाने लगा।
झर गया पतझर,नय मधुमास मुस्काने लगा।

राह भी आगे की काफी साफ अब दिखने लगी;
रौशनी सूरज पुन: अविराम बरसाने लगा।

थी ख़बर नोकीले करवाये हैं सब हिरनों ने सींग;
भेड़िया मंदिर में जा पहुंचा-भजन गाने लगा॥

घर के अंदर व्यक्तिगत दुख था हिमालय से बड़ा;
घर से निकले तो वही राई नज़र आने लगा॥

जेठ की तपती दुपहरों ने किया विद्रोह तो
एयरकण्डीशण्ड कमरों मे धुआं जाने लगा॥

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