Sunday, July 27, 2008

घात प्रतिघात में

घात प्रतिघात में रहो प्यारे;
हर खुराफ़ात में रहो प्यारे।

बात जो हो कभी न कहने की,
बात ही बात में कहो प्यारे।

कह दिया दूसरों से- ‘पहले आप’।
यूं न जज़बात में बहो प्यारे।

अपनी छतरी थमा दी औरों को;
क्यूं न बरसात में रहो प्यारे।

रोटियाँ! वो भी मान-आदर से!
अपनी औक़ात में रहो प्यारे।

No comments:

Post a Comment