Sunday, July 27, 2008

यूं तो

यूं तो इस देश मे भगवान बहुत हैं साहब।
फिर भी सब लोग परेशान बहुत हैं साहब॥

कर्ज़माफ़ी के इनामों से इमरजेन्सी तक,
होठ सी देने के सामान बहुत हैं साहब।

वो भी सूली लिये फिरते हैं मगर हम सब की,
ईसा के भेस में शैतान बहुत हैं साहब।

ऐसी ग़ज़लों का प्रकाशन तो बहुत मुश्किल है;
आरती लिखिये, क़दरदान बहुत हैं साहब।

जल्द ही होंगे इलेक्शन मेरा दिल कहता है;
हाकिम-ए-वक़्त मेहरबान बहुत हैं साहब ।

2 comments:

  1. यूं तो इस देश मे भगवान बहुत हैं साहब।
    फिर भी सब लोग परेशान बहुत हैं साहब॥

    bahut badhiya.....

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  2. वाकई में आपकी गज़लों को कौन पढ़े ! आरती ही पढ़ी जाती रही है !

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